जनपद जौनपुर (0प्र0) में भूमि उपयोग प्रतिरूप का एक भौगोलिक अध्ययन 

 

महीप चैरसिया1, डाॅ. प्रमोद कुमार तिवारी2

1षोध छात्र (जे.आर.एफ.) भूगोल विभाग, नागरिक पी.जी. काॅलेज, जंघई, जौनपुर (0प्र0).

2प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष भूगोल विभाग नागरिक पी.जी. काॅलेज जंघई जौनपुर.

*Corresponding Author E-mail: mahipchaurasia66@gmail.com, pktiwari61@gmail.com

 

ABSTRACT:

प्राकृतिक संसाधनों में भूमि महत्वपूर्ण संसाधन है। इसी भूमि पर संपूर्ण संसाधनों का विस्तार हुआ है। अध्ययन क्षेत्र जनपद जौनपुर, मुख्यतः समतल मैदानी क्षेत्र होनें के कारण भूमि की उपयोगिता का महत्व अधिक है। यहाँ के लोगों की आर्थिक प्रगति सामान्यतः भूमि उपयोगिता एवं विकास पर निर्भर है। भूमि का भविष्य में अधिकतम उपयोग कर क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को और भी विकसित किया जा सकता है। चूँकि भूमि की पूर्ति लगभग निष्चित है तथा जनसंख्या का भार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अतः इसके अनुकूलतम उपयोग की आवश्यकता है। क्षेत्र में खनिज संसाधनों और पर्याप्त पूँजी का आभाव है जिसके कारण क्षेत्र का समन्वित विकास कृषि में सुधार के माध्यम से ही किया जा सकता है। भूमि उपयोग के विभिन्न पक्षों का समुचित क्षेत्रीय विष्लेषण करके नियोजन की ऐसी रूप रेखा प्रस्तुत की जाए जिससे प्रति इकाई भूमि से अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके एवं तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या का भरण-पोषण संभव हो सके। इसी उद्देश्य से प्रस्तुत शोध पत्र में भूमि उपयोग प्रतिरूप का अध्ययन किया गया है। जिसके लिए द्वितीयक एवं तृतीयक स्रोतों से प्राप्त आँकड़ो का प्रयोग किया गया है। तथ्यों को स्पष्ट करनें के लिए जिला सांख्यिकीय पत्रिका क्षेत्र के भौतिक और सांस्कृतिक मानचित्र का प्रयोग किया गया है।

 

KEYWORDS:  भूमि उपयोग, संसाधन, ग्रामीण विकास, भूमि सुधार, नियोजन, शस्य प्रतिरूप।

 

 


प्रस्तावना:-

मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही भूमि संसाधन का अधिकाधिक उपयोग मानव का चरम लक्ष्य रहा है, क्योंकि उसकी संस्कृति और सभ्यता के मूल में भूमि का महत्वपूर्ण स्थान रहा है (मौर्या, एस.डी. 2012) मानव की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक विचारधारा को भू संसाधन और उसके उपयोग की अवस्थाओं ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। भूमि उपयोग की प्रारंभिक अवस्था में सीमित आवश्यकता और अपार भूमि उपलब्धता के कारण मानव के लिए समस्या नही थी, लेकिन बढ़ती आबादी, अधिकाधिक आवष्यकता, सीमित होती भूमि और भू संसाधन का अवैज्ञानिक उपयोग आधुनिक युग में भारत जैसे कृषि प्रधान देषों के लिए एक विकट समस्या का रूप धारण कर लिया है (गौतम, अलका 2014) लम्बी अवधि से भूमि के अवैज्ञानिक उपयोग ने पारिस्थिति को असंतुलित कर दिया है (तिवारी, आर.सी. 2014) भूमि उपयोग में आर्थिक संसाधनों का अधिकाधिक विनियोजन कर भूमि की सघनता को बढ़ा दिया जाता है। जो जन जीवन के जीवन स्तर को उन्नयन करनें की ओर अग्रसारित करता है। भारत में प्रति परिवार भूमि की कमी तथा उसका इधर-उधर बिखरा होना कृषि अर्थव्यवस्था के अनुकूल नहीं है। बिखराव के कारण नियोजित कृषि कार्य करना संभव नही हो पाता (सिंह, बी.एन. 2014) जौनपुर जनपद गंगा-गोमती के जलोढ़ से निर्मित एक समतल तथा उपजाऊ मैदान है और यहाँ के निवासियों के लिए प्रमुख संसाधन आधार भूमि है (कुमार, रतन 1999) अध्ययन क्षेत्र के किसी भी भौगोलिक तत्व का विश्लेषण कृषि के संदर्भ में ही किया जा सकता है। भूमि उपयोग का प्रारूप क्षेत्र विषेष के प्राकृतिक पर्यावरण एवं मानवीय क्रिया-कलाप से अत्यधिक प्रभावित होता है (खुल्लर, 2015) प्राकृतिक तत्वों में धरातलीय उच्चावच विषेष पर मिट्टी की सरंचना, स्वरूप एवं उर्वरा शक्ति, भूमि-उपयोग के प्रारूप को निष्चित करने में प्रमुख कारक है। जनपद जौनपुर में भूमि उपयोग का विद्यमान स्वरूप संसाधन के विभिन्न प्रकार के कालक्रमिक उपयोग का प्रतिफल है। इस काल क्रमिक उपयोग को सांस्कृतिक तत्वों जैसे-जनसंख्या का घनत्व, भू स्वामित्व का स्वरूप, सिंचाई की सुविधा एवं भू-उपयोग संबंधी ज्ञान ने बहुत प्रभावित किया है। विभिन्न नहर परियोजनाओं एवं मानव तकनीक, उर्वरकों के प्रयोग से ऊसर कृषि अयोग्य भूमि का कृषिगत भूमि में परिवर्तित होनें, झीलों, नदियों तथा भूमिगत एवं भूमिगत जल संसाधन का अधिक उपयोग होनें तथा संपूर्ण प्रदेष में आधुनिक कृषि संबंधी उपकरणों के प्रयोग से भूमि का अधिकाधिक उपयोग संभव हुआ है (कुमार, रतन 1999) अध्ययन क्षेत्र में नियोजित भूमि उपयोग के माध्यम से ग्रामीण विकास को तीव्रगति प्रदान किया जा सकता है, जो इस शोध प्रपत्र के अनुसंधान का मुख्य लक्ष्य है।

 

 

अध्ययन क्षेत्र:-

जौनपुर जनपद, Ÿारप्रदेष का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर है, यह वाराणसी प्रभाग के Ÿार पश्चिमी भाग में स्थित है। इसका विस्तार 24024’. से 26012’. अक्षांष और 8207’पू. से 8305’ पू. देषांतर के बीच है (चित्र-1) गोमती और सई मुख्य नदियाँ हंै मिट्टी मुख्य रूप से रेतीली, चिकनी बलुई है। जनपद में खनिजों की कमी है। जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 2038 वर्ग कि.मी. है। जौनपुर जिले की वास्तविक जनसंख्या 4,476,072 हैं, जिसमें 2,217,635 पुरूष तथा 2,258,437 महिला जनसंख्या है। जनसंख्या घनत्व 1113 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि.मी. है। साक्षरता 73.66 प्रतिषत है, जिसमें 86.06 प्रतिषत पुरूष तथा 61.7 प्रतिषत महिलाएँ साक्षर है। जिले में लिंगानुपात 1024 है जोकि भारत में 1000 पुरूषों पर 940 महिलाओं की तुलना में अधिक है। 93 प्रतिषत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है जिनकी आजीविका का मुख्य साधन कृषि और कृषि आधारित उद्योग है।

 

शोध अध्ययन का उद्देष्य:-

1.    ग्रामीण भूमि उपयोग प्रतिरूप की स्थिति का आकलन करना।

2.    नियोजित भूमि उपयोग किस सीमा तक ग्रामीण विकास में सहायक होता है।

3.    अध्ययन क्षेत्र में भूमि उपयोग प्रतिरूप की समस्याओं को ज्ञात करना तथा जन प्रतिक्रिया आधारित सुझावों का विश्लेषण करना।

 

परिकल्पना:-

1.    जनपद जौनपुर कृषि प्रधान क्षेत्र है जो ग्रामीण आजीविका का मुख्य आधार है।

2.    ग्रामीण विकास नियोजित भूमि उपयोग से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित है।

3.    भूमि उपयोग नियोजन से संबंधित, योजनाओं और नितियों के माध्यम से कृषि उत्पादकता और लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है।

 

आँकड़ा स्रोत तथा शोध विधि तंत्र:-

प्रस्तुत शोध पत्र में द्वितीयक एवं तृतीयक स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। तथ्यों को स्पष्ट करने के लिये अध्ययन क्षेत्र का भौतिक एवं सांस्कृतिक मानचित्रों तालिकाओं का प्रयोग किया गया है। तथा अन्य सामाजिक, आर्थिक तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए जिला सांख्यिकीय पत्रिका 2018, राष्ट्रीय जनगणना 2011 तथा जिला हथकरघा कार्यालय तहसील और विकासखण्ड कार्यालय से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। यह शोध पत्र व्याख्यात्मक और विष्लेषणात्मक अनुसंधान पर आधारित है।

 

परिणाम एवं परिचर्चा:-

भूमि उपयोग पृथ्वी पर क्रमिक मानवीय बसाव और भूमि के साथ-साथ उसके सतत् गतिमान संसाधन संयोजन की व्याख्या प्रस्तुत करता है। प्रो0 वारलों के अनुसार भूमि संसाधन उपयोग, भूमि समस्या एवं योजना सम्बन्धी विवेचना की धुरी है (वारलो 1954) फलस्वरूप भूमि के सदुपयोग एवं दुरूपयोग के मूल्यांकन एवं उसके आधार पर आदर्ष उपयोग के निर्माण हेतु यह आवश्यक है कि विभिन्न क्षेत्रों में जिस ढंग से विभिनन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भूमि का उपयोग किया जा रहा है उसकी व्याख्या और समीक्षा की जाए। भूमि उपयोग की दृष्टि से भूमि को चार भागों में विभाजित किया जाता है‘-  1. निवास भूमि (नगर ग्राम के बस्ती क्षेत्र) 2. कृषि भूमि क्षेत्र 3. गोचर चारागाह क्षेत्र 4. वन क्षेत्र (जिसमें बंजर ऊसर भूमि भी सम्मिलित है) जनपद जौनपुर में वर्तमान समय में भूमि उपयोग प्रतिरूप वृद्धि की ओर अग्रसर है। सांख्यिकीय पत्रिका से स्पष्ट है कि सर्वत्र कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में शुद्ध कृषिगत भूमि का प्रतिषत अधिक है। इसके बाद परती भूमि वन कृषि योग्य बंजर भूमि तथा परती के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि का स्थान है।

 

 

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अध्ययन क्षेत्र में भू-उपयोग प्रतिरूपः-

1.     शुद्ध बोया गया क्षेत्रः-

जनपद जौनपुर में 21 विकास खण्ड हैं। इन 21 विकासखण्डों में शुद्ध बोया गया क्षेत्र समान नही है। कहीं कम तो कहीं अधिक है। अध्ययन क्षेत्र में शुद्ध बोया गया क्षेत्र 276 हजार हेक्टेयर (69.15 प्रतिषत) (2016-17) है। जो अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल सर्वाधिक धर्मापुर विकास खण्ड में तथा सबसे कम खुटहन विकास खण्ड में है। शुद्ध बोये गये क्षेत्र की अधिकता का कारण वनों का आभाव, ऊसर एवं कृषि आयोग्य भूमि की कमी, सिंचाई के साधनों का विकास, जनसंख्या का विकेन्द्रीयकरण होना आदि कारक है। शुद्ध बोये गये क्षेत्र में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है।

 

 

 

दो फसली क्षेत्र:-

दो फसली क्षेत्र के अंतर्गत वे कृषि भूमि आते है, जिस पर वर्ष में दो या दो से अधिक फसलों का उत्पादन किया जाता है। अध्ययन क्षेत्र में दो फसली भूमि का क्षेत्र 193 हजार हेक्टेयर (2016-17) है। उन विकास खण्डों में जहाँ सिंचाई सुविधा उपलब्ध है दो फसली क्षेत्र अधिक मिलते है जहाँ इन सुविधाओं का आभाव रहता है। वहाँ अपेक्षाकृत कम मिलते है। दो फसली क्षेत्र सर्वाधिक शाहगंज विकास खण्ड में 12561 हेक्टेयर तथा न्यूनतम धर्मापुर विकास खण्ड में 5465 हेक्टेयर था (2016-2017)

 

2.     कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि:- जनपद जौनपुर में कृषि अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि का क्षेत्रफल 50052 हेक्टेयर (2016-17) है। कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि का सर्वाधिक क्षेत्रफल खुटहन विकास खण्ड (3458 हेक्टेयर) सबसे कम क्षेत्रफल धर्मापुर विकासखण्ड (1246 हेक्टेयर) का है।

 

3.     परती भूमि:-

जौनपुर जनपद में परती भूमि के अंतर्गत नवीन परती और पुरातन परती के क्षेत्र आते हैं। नवीन परती वह भूमि है, जिसमें एक वर्ष में कोई भी फसल नही बोयी जाती और पुरातन परती वह भूमि है जिसमें परती रहने का समय 2 से 5 वर्ष का होता है। जनपद जौनपुर में परती भूमि का कुल क्षेत्रफल 2014-15 में 32657 हेक्टेयर था तथा 2016-17 में 26409 हेक्टेयर है। सर्वाधिक परती भूमि सिरकोनी विकास खण्ड में 2731 हेक्टेयर तथा सबसे कम धर्मापुर विकासखण्ड में 516 हेक्टेयर है। (2016-17) (तालिका-1)

 

4.     कृषि योग्य बंजर भूमिः-

कृषि योग्य बंजर भूमि से तात्पर्य उस भूमि से है, जिसमें अनुकूल परिस्थितियाँ होनें पर कृषि कार्य संभव हो सकता है। जनपद जौनपुर में कुल कृषि योग्य बंजर भूमि 2014-2015 में 7787 हेक्टेयर थी जो 2016-17 में 8781 हेक्टेयर हो गयी। कृषि योग्य बंजर भूमि का सर्वाधिक क्षेत्रफल बरसठी विकास खण्ड में (770 हेक्टेयर) है। सबसे कम क्षेत्रफल डोभी विकासखण्ड का (168 हेक्टेयर) है।

 

5.     चारागाह:-

जनपद जौनपुर में चारागाह न्यून क्षेत्र में पाये जाते हैं। प्राप्त आॅकड़ों के आधार पर संपूर्ण जनपद के 1333 हेक्टेयर (2016-17) क्षेत्र पर चारागाह विस्तृत है। चारागाह का सर्वाधिक क्षेत्रफल शाहगंज विकासखण्ड में 190 हेक्टेयर तथा करंजाकला विकासखण्ड में 130 हेक्टेयर है। सबसे कम धर्मापुर विकासखण्ड में 4 हेक्टेयर तथा बक्सा विकासखण्ड में 9 हेक्टेयर है।

 

6.     वनः-

जनपद जौनपुर में वन न्यून क्षेत्र पाये जाते है। प्राप्त आँकड़ों के आधार पर जनपद के 429 हेक्टेयर भाग पर वन विस्तृत है। वन का सर्वाधिक क्षेत्रफल सिरकोनी विकासखण्ड में (102 हे.) है। बरसठी (77 हे.), मुफ्तीगंज (66 हे.) रामपुर में (37 हे.) है। शेष विकासखण्डों में (करंजाकला, बदलापुर, मुंगराबादषाहपुर, खुटहन, शाहगंज) वन नगण्य है। जनपद जौनपुर में अब तक वनों का बहुत शोषण हुआ है। जिससे जैव संसाधनों में कमी और पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि हुयी है।

 

निष्कर्ष:-

जौनपुर जनपद की कुल 92.3 प्रतिषत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। कुल क्षेत्रफल के 70 प्रतिषत भू-भाग (2.79 लाख हे) पर कृषि कार्य होता है तथा कुल कार्यषील जनसंख्या का 68 प्रतिषत होग कृषि कार्य से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए है क्षेत्र की आजीविका का मुख्य आधार कषि और कृषि आधारित उद्योग है। क्षेत्र में 221.83 हजार लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे है तथा अध्ययन क्षेत्र समन्वित ग्रामीण विकास के मानकों में पिछड़ेपन की स्थिति मंे है। नियोजित भूमि उपयोग के माध्यम से क्षेत्र का विकास संभव किया जा सकता है। क्षेत्र की बढ़ती हुयी जनसंख्या वृद्धि एवं भूमि के बढ़ते हुये लगाव से अध्ययन क्षेत्र में केवल भूमि उपयोग में परिवर्तन हुआ है, बल्किन लोगों के अर्थ तंत्र पर भी प्रभाव पड़ा है। प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा चलाए गए भूमि सुधार कार्यक्रम तथा सहकारिता और चकबंदी जैसे नियोजित भूमि उपयोग कार्यक्रमों से कृषि कार्य और उत्पादन में तीव्र वृद्धि सम्भव हुआ है तथा लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया है। मनरेगा कार्यक्रम के माध्यम से ग्राम पंचायत की सक्रिय भागीदारी से भूमि उपयोग के प्रतिरूप में संतुलन स्थापित हो सका है।

 

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1.    कुमार, रतन 1999. भूमि उपयोग परिवर्तन एवं नवाचार, शोध प्रबनध वीर बहादुर सिंह पूर्वाचल विश्वविद्यालय, जौनपुर पेज नं 42-75.

2.    खुल्लर, डी. आर. 2015, भूगोल, मैक्ग्राहिल प्रकाषन, नई दिल्ली, पेज नं. 7.7-7.9

3.    गौतम, अलका, 2014. संसाधन एवं पर्यावरण, शारदा पुस्तक भवन, प्रयागराज, 230-238

4.    चैरसिया, महीप, 2018. सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण एवं ग्रामीण विकासः जौनपुर जनपद का एक भौगोलिक अध्ययन, स्वीकृत शोध प्रस्ताव वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर।

5.    जिला सांख्यिकीय पत्रिका जनपद जौनपुर

6.    तिवारी, आर.सी. और सिंह, बी.एन. 2014, कृषि भूगोल, प्रवालिका पब्लिकेशन, प्रयागराज, पेज नं. 38-69

7.    मौर्य, एस.डी. 2012. मानव एवं आर्थिक भूगोल, शारदा पुस्तक भवन, प्रयागराज, पेज नं. 486-491

8.    बर्णवाल, महेष, 2012. भूगोल एक समग्र अध्ययन, काॅसमाॅस प्रकाशन, वजीराबाद, दिल्ली पेज नं. 122-126

9.    जिला हथकरघा कार्यालय, जौनपुर

10. जिला खादी एवं ग्रामोद्योग कार्यालय, जौनपुर

11. Chandna, R.C. and Sidhu, M.S., 1980. Introducation to Population Geography, Kalyany Publication, New Delhi, P.59-62

12.    District Census hand Book Jaunpur (2018)

13.    Tiwari, P.K., 2019. NGJI-BHU, A Review of Rural development and Poverty Amelioration Programes in Niyamatabad Block, District Chanduali. P-2.

14.    World Bank Collection of development indicators (2020)

 

 

 

 

 

Received on 07.08.2020            Modified on 24.08.2020

Accepted on 11.09.2020            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(3):161-166.